aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "नज़ला"
नजमा शाहीन खोसा
लेखक
नजमा तसद्दुक़
born.1917
शायर
नजमा रहमानी
नजमा मंसूर
born.1967
नजमा निकहत
नजमा ख़ान
नजमा उसमान
नजमा साक़िब
नजमा महमूद
born.1942
नजमा नसीम
नजमा जाफ़री
1909 - 1987
नजमा शाहीन नजमी
नजमा ज़ेब ग़ौरी
संपादक
नजमा ख़ातून
नज्मा अख़लाक़
हाँ बीवी के बदले ज़रा मामूँ झटक गए, जैसे बच्चा उन्होंने ही पैदा किया हो। थोड़ी सी तोंद ढलक आई। गालों में लंबी-लंबी क़ाशें गहरी हो गईं। बाल पहले से ज़्यादा सफ़ेद हो गए। अगर दाढ़ी न बनी होती तो गालों पर च्यूँटी के सफ़ेद-सफ़ेद अंडे फूट आते। जब दो...
"वही है।" उसने ये लफ़्ज़ अपने मुँह के अंदर ही अंदर दुहराए और साथ ही उसे पूरा यक़ीन हो गया कि वो गोरा जो उसके सामने खड़ा था, वही है जिससे पिछले बरस उसकी झड़प हुई थी, और इस ख़्वाहमख़्वाह के झगड़े में जिसका बाइस गोरे के दिमाग़ में चढ़ी...
थोड़ी सर्दी ज़रा सा नज़ला हैशायरी का मिज़ाज पतला है
शैख़-ए-बे-नफ़स को नज़ला नहीं है नाक की राहये है ज़िर्यान-ए-मनी धात चली जाती है
फिर टी सेट्स की तारीफ़ शुरू हो जाएगी जिसका नज़ला डब्लू आर ड्रोपर्स और लंदन टेलर्स की सूटिंग पर गिरेगा। उसके बाद मोटरों और साइकिलों पर बात शुरू हो जाएगी। उसमे अच्छे बुरे की तमीज़ शुरू कर दी जाएगी। नए माडलों के लेफ़्ट हैंड राइट हैंड ड्राइव के राज़ उगलना...
शहर की ज़िंदगी नए और तरक़्क़ी याफ़्ता ज़माने के एक ख़ूबसूरत अज़ाब है। जिस की चका चौंद से धोका खा कर लोग इस फंस तो गए लेकिन उन के ज़हनी और जज़्बाती रिश्ते आज भी अपने माज़ी से जुड़े हैं। वो इस भरे परे शहर में पसरी हुई तन्हाई से नालाँ हैं और इस की मशीनी अख़्लाक़ियात से शाकी। ये दुख हम सब का दुख है इस लिए इस शायरी को हम अपने जज़्बात और एहसासात से ज़्यादा क़रीब पाएगे।
नज़लाنزلہ
bad cold
जुकाम की एक दशा जिसमें बलराम निकलता है ।
Azadi Ke Baad Urdu Shairat
शायरी तन्क़ीद
नाला-ए-यतीम
अल्लामा इक़बाल
संकलन
Shrimati Indira Ghandhi
नज्मा सुलताना
जीवनी
Ganga Ki Kahani Usi Ki Zabani
नजमा नक़वी
विज्ञान
Aur Sham Thahar Gayi
नज़्म
Kitab-e-Dil
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Khayal Ki Khushbu
सय्यद हामिद: की गुम उस में हैं आफ़ाक़
Main Akhen Band Rakhti Hoon
काव्य संग्रह
Shakh-e-Hina
कविता
नीला हीरा
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
कहानी
Syed Hamid: Ek Khudnawisht
आत्मकथा
Syed Hamid Ki Gum Usme Hain Aafaq
Seb Ka Darakht
कहानियाँ
Khawab Hijrat Kar Rahe Hain
महिलाओं की रचनाएँ
बुढ़िया पहले रोज़ से ही, जब उसने बैंगन पकाए थे, रहमान की तरफ़ से इस एहतिजाज की मुतवक़्क़े थी। लेकिन रहमान की ख़ामोशी से बुढ़िया ने उल्टा ही मतलब ले लिया। दरअस्ल बुढ़िया ने क़रीब-क़रीब एक निखट्टू आदमी के लिए अपना ज़ायक़ा भी तर्क कर डाला था। बुढ़िया का सोचने...
मिसेज़ गुल के हाँ उन दिनों जैसा कि मैं बयान कर चुका हूँ, एक नए नौजवान की आमद-ओ-रफ़्त थी इसलिए कि वो प्रोफ़ेसर से तलाक़ ले चुकी थीं। ये साहब रेलवे में मुलाज़िम थे और उनका नाम शफ़ीक़ुल्लाह था। आपको दमे की शिकायत थी और मिसेज़ गुल हर वक़्त उनके...
जब जोश साहब के लिए निज़ाम-ए-दन मीर उसमान अली ख़ान ने मुल्क बदरी का फ़रमान जारी किया तो मुझे किसी ने हैदराबाद से इत्तिला दी कि “साक़ी” में “ग़ज़ल-गो से ख़िताब” जो नज़्म जोश की छपी है उसपर ये इताब हुआ है। पेशी के एक मुँह चढ़े आदमी ने निज़ाम...
दोनों के ख़ानदान वाले भी उनकी दोस्ती पर नाज़ करते। रोहन बचपन से बीमार रहता था। बारिश में भीगा कि बुख़ार जकड़ लेता, लू लगती तो बिस्तर पर पड़ जाता, सर्दी में नज़ला, खाँसी उसे घेरे रहते। इस वजह से दिमाग़ी तौर पर कमज़ोर हो गया था। सातवीं क्लास के...
इस क़िस्म के मशवरे देने वालों की उस वक़्त सब से ज़्यादा बन आती है जब उनकी दुआ से उनका कोई दोस्त या अ'ज़ीज़ बीमार पड़ जाता है। इसके बाद उनके ग़ोल के ग़ोल आपके ग़रीबख़ाने पर गिरना शुरू हो जाएँगे, उन्हें इससे बहस नहीं कि आपको महज़ मौसमी बुख़ार...
टिकट कलेक्टर ने सिगरेट का आख़िरी टुकड़ा खिड़की के बाहर फेंका और फ़ैसलाकुन अंदाज़ से खड़े हो कर फ़ैसला दिया। बुड्ढा तू यूं न मानेगा, अच्छा खड़ा हो जा और जामा तलाशी दे वर्ना ले चलता हूँ डिप्टी साहब के हाँ, जो पास के डिब्बे में मौजूद हैं और ऐसों...
हैरत है कि उन्होंने बाक़ी के हरूफ़-ए-तहज्जी क्यों छोड़ दिए। ए से ज़ेड तक इस्तेमाल करने में क्या अमर माने था। ये खोई हुई ताक़त-ए-मरदुमी के अलावा खांसी ज़ुकाम, नज़ला, गठिया और पेट के दर्द का भी हकीमी ईलाज करते हैं। अलबत्ता मुलाक़ात के लिए फ़ोन पर वक़्त मुक़र्रर करना...
उन दिनों मेरे मआशी हालात पहले से भी ज़ियादा ख़राब हो गये थे और मैं अपना ज़ियादा-तर वक़्त सिनेमा घरों के तीसरे दर्जे में गुज़ारने लगा। मेरी बीवी को हर वक़्त नज़्ला घेरे रहता था। अस्ल में वो रोज़ाना पूरा घर और ख़ास तौर से फ़र्श ज़रूर धोया करती थी।...
साईं फ़ज़ल शाह की किताब-ए-ज़िंदगी ज़ख़ीम और सच्ची कहानियों से मामूर थी। उसके क़िस्से ने अल्लाह रक्खा को बहुत कुछ सिखाया। वैसे अब तक उसके यहां हर सुब्ह और हर शाम एक सी थी। उम्र एक डगर पर चल रही थी कि यकायक ज़लज़ला आया और वो भी दिन के...
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