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नज़्म
बंजारा-नामा
ज़र दाम-दिरम का भांडा है बंदूक़ सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया जो मुल्कों मुल्कों हांडा है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मैं हूँ क्या वैश्या
नोट के अलावा मेरी ज़िंदगी का कोई नायक नहीं
ज़िंदगी में मेरा न है अस्तित्व न कोई ईमान
अंकिता गर्ग
कहानी
जिलानी बानो
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ग़ज़ल
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं हम को अबस बदनाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा
तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
बशीर बद्र
नज़्म
दो इश्क़
छोड़ा नहीं ग़ैरों ने कोई नावक-ए-दुश्नाम
छूटी नहीं अपनों से कोई तर्ज़-ए-मलामत