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ग़ज़ल
भट्टियों पर जा के पूछेंगे बहार आने तो दो
आलम-ए-मस्ती में मस्तों से बयान-ए-मय-फ़रोश
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
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ग़ज़ल
ज़हे ज़हे मेरे ईमान-ओ-दीं कि मैं ने उन्हें
फ़िदा-ए-फ़र्क़-ए-ख़ुम-ओ-पा-ए-मय-फ़रोश किया
बाल मुकुंद बेसब्र
नज़्म
हिज्र ओ विसाल
सेहन-ए-हरम से अंजुमन-ए-मय-फ़रोश तक
दो-गाम फ़ासला है ज़रा देख-भाल के
शोरिश काश्मीरी
ग़ज़ल
इक चश्म-ए-मय-फ़रोश है मसरूफ़-ए-इंतिख़ाब
ऐसे में ग़म-नसीब को ख़ातिर में लाए कौन