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नज़्म
काश
मुझ में पर्वाज़-ए-बग़ावत ने पनपना चाहा
मेरे जज़्बात-ओ-तसव्वुर में बड़ी शिद्दत थी
विनोद कुमार त्रिपाठी बशर
ग़ज़ल
बड़े दर्शन तुम्हारे हो गए राजा की सेवा से
मगर मन का पनपना चाहते हो तो करो पुन भी
अकबर इलाहाबादी
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
फ़िरक़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक तस्वीर-ए-रंग
तू ने सरमाए की छाँव में पनपने के लिए
अपने दिल अपनी मोहब्बत का लहू बेचा है