aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "परखना"
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहताकिसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता
ये सर्दियों का उदास मौसम कि धड़कनें बर्फ़ हो गई हैंजब उन की यख़-बस्तगी परखना तमाज़तें भी शुमार करना
अलावा बरीं, किसी शे’र को महज़ देखकर आप ये नहीं कह सकते कि ये बेइरादा कहा गया है कि बिलइरादा। ये मालूम करने के लिए आपके पास कुछ ख़ारिजी मालूमात भी होना चाहिए कि ये शे’र, शायर ने किस वक़्त, किस तरह और क्यों कहा था। ज़ाहिर है कि हर...
मता-ए-दर्द परखना तो बस की बात नहींजो तुझ को देख के आए वो हम को पहचाने
फ़ल्सफ़े के उनवान के तहत जो अशआर हैं वो ज़िंदगी के बारीक और अहम तरीन गोशों पर सोच बिचार का नतीजा हैं। इन शेरों में आप देखेंगे कि ज़िंदगी के आम से और रोज़ मर्रा के मुआमलात को शायर फ़िक्र की किस गहरी सतह पर जा कर देखता, परखता और नताएज अख़ज़ करता है। इस क़िस्म की शायरी को पढ़ना इस लिए भी ज़रूरी है कि उस से हमारे अपने ज़हन-ओ-दिमाग़ की परतें खुलती हैं और हम अपने आस-पास की दुनिया को एक अलग नज़र से देखने के अहल हो जाते हैं।
परखनाپرکھنا
to examine, judge, test
जदीदियों को इफ़रात-ओ-तफ़रीत, बे-राह-रवी और धाँदली-बाज़ी के इल्ज़ामात से मुत्तहिम किया गया है। लेकिन उनके बड़े कारनामों में एक ये भी है कि उन्होंने “इज़हार-ए-ज़ात” के उसूल को क़दीम या क्लासिकी शाइ'री पर जारी नहीं किया। तरक़्क़ी-पसंद तन्क़ीद ने क्लासिकी शाइ'री को अपने नज़रियात की रौशनी में परखा और उसे...
वा रख सदा दरीचा-ए-ख़ुद-आगही कि तूअच्छे तो क्या बुरों को परखना न भूल जाए
अपने किरदारों के बातिन तक मंटो की रसाई महज़ ज़हन के वसीले से नहीं होती वर्ना उसके अफ़साने केस हिस्ट्रीज़ बन जाते और इस तरह सिर्फ़ एक समाजियाती मुताले’ की मौज़ू की हैसियत इख़्तियार कर लेते। लेकिन एक तो ये मंटो समाजी हक़ीक़त और फ़न्नी हक़ीक़त के इम्तियाज़ का गहरा...
बोद्धिसत्व जी ने बड़े हो के बाप को चुड़ैल के चंगुल से निकालने और मनुष्य जाती के बीच जाने की ठानी, चुड़ैल ने कहा मेरे लाल तूने मनुष्य जाती के बीच जाने की बात ठान ही ली है तो अपनी मैया की बात सुन ले कि चुड़ैलों के बीच गुज़ारा...
“औ'रत को एड़ी से लेकर चोटी तक परखना चाहिए, जैसे मछली को दुम से लेकर सर तक जाँची जाती है।” गीता भी एक मछली ही तो थी जो बंगाल की खाड़ी से उचक कर धरती की लहरों पर थिरकने लगी थी। पर अगले ही पल उसे झुंजलाहट हुई। उसी लेखक...
इस बार शब-ए-चार-दहुम कुछ तो परखनाफिर काट न देना मिरे पर शाम से पहले
हैं आप जौहरी तो परखना है आप कोअपने हर एक शे'र में मोती जड़ा हूँ मैं
उस से कितना था प्यार लोगों कोइस कसौटी पे अब परखना है
अपने मेआ'र पे ही ख़ुद को परखना सीखोमुझे देखो मैं किसी का भी मुक़ाबिल न बना
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