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कहानी
इस्मत चुग़ताई
ग़ज़ल
वास्ते जिस के हुए बहर-ए-फ़ना के आश्ना
वो पसीजा भी न अपनी जाँ-फ़िशानी देख कर
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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वास्ते जिस के हुए बहर-ए-फ़ना के आश्ना
वो पसीजा भी न अपनी जाँ-फ़िशानी देख कर