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नज़्म
रिश्वत
डाकुओं के दौर में परहेज़-गारी जुर्म है
जब हुकूमत ख़ाम हो तो पुख़्ता-कारी जुर्म है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़ से ख़िताब
पुख़्ता-कारी सीख ये आईन-ए-ख़ामी ता-कुजा
जादा-ए-अफ़रंग पर यूँ तेज़-गामी ता-कुजा
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
इक आग़ाज़-ए-सफ़र है ऐ 'ज़फ़र' ये पुख़्ता-कारी भी
अभी तो मैं ने अपनी पुख़्तगी को ख़ाम करना है
ज़फ़र इक़बाल
शेर
क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है
जो पैमाना उठाते हैं वो थर्राया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
नज़्म
शहर से बाहर निकलते रास्ते
कोई अफ़्साना है मुज़्मर या हक़ीक़त या फ़रेब-ए-पुख़्ता-काराँ
मैं नज़र रखता हूँ तुम पर
वली आलम शाहीन
ग़ज़ल
क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है
जो पैमाना उठाते हैं वो थर्राया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
वही इक फ़रेब हसरत कि था बख़्शिश-ए-निगाराँ
सो क़दम क़दम पे खाया ब तरीक़-ए-पुख़्ता-काराँ