aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "फ़य्याज़"
फ़य्याज़ हाशमी
1920 - 2011
शायर
धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़
born.1987
फ़ैज़ ख़लीलाबादी
born.1980
शेवन बिजनौरी
born.1932
उरूज ज़ैदी बदायूनी
1912 - 1987
फ़य्याज़ फ़ारुक़ी
born.1967
मोहम्मद फ़य्याज़ हसरत
born.1994
अफ़गन नजीबाबादी
1924 - 1984
फ़य्याज़ ग्वालियरी
1906 - 1980
लेखक
फ़य्याज़ अस्वद
फ़य्याज़ तहसीन
फ़य्याज़ रिफ़अत
1940 - 2022
फ़य्याज़ अहम्द फ़ैज़ी
इरफ़ान ग़ाज़ी
born.1998
सय्यद फ़य्याज़ अहमद
आज जाने की ज़िद न करोयूँ ही पहलू में बैठे रहो
हामिद समझ गया ये महज़ शरारत है। मोहसिन इतना फ़य्याज़-तबअ न था। फिर भी वो उसके पास गया। मोहसिन ने दोने से दो तीन रेवड़ियाँ निकालीं। हामिद की तरफ़ बढ़ाईं। हामिद ने हाथ फैलाया। मोहसिन ने हाथ खींच लिया और रेवड़ियाँ अपने मुँह में रख लीं। महमूद और नूरी और...
उसे मुतरिब-ए-बेबाक कोई और भी नग़्माऐ साक़ी-ए-फ़य्याज़ शराब और ज़ियादा
हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहलेन थी दुश्मनी किसी से तिरी दोस्ती से पहले
ग़ालिब (हंसकर) तो यूं कहो कि खिचड़ी पकाकर आए हो तुम और हाली। (वक़फ़ा) भई हाली, सुनो बात ये है कि शे’र कहने का जौहर फ़ित्री और तबीई होता है जिसे ये नेअमत मब्दा-ए-फ़य्याज़ की तरफ़ से अता होती है उसका सोना मश्क़ से ख़ुदबख़ुद कसौटी पर चढ़ता चला जाता...
फ़य्याज़فیاض
liberal, generous
उर्दू ख़ुश ख़ती
हकीम फ़य्याज़ हुसैन जामई
सीखने के संसाधन
Urdu Afsane Ke Ibtidai Nuqoosh: Ek Tanqeedi Jaeza
फ़िक्शन तन्क़ीद
बाल-साहित्य
Urdu Afsane Ka Pas Manzar
शरह-ए-दीवान-ए-ग़ालिब
व्याख्या
Anwar
फ़य्याज़ अली एडवोकेट
नॉवेल / उपन्यास
Hazar Ratain
दास्तान
Hyderabad Mein Afsana Nigari
अनीस क़य्यूम फ़य्याज़
मज़ामीन / लेख
Qand-e-Mukarrar
हास्य-व्यंग
Aaina-e-Waris
फ़य्याज़ काविश
आत्मकथा
Zinda Apni Baton Mein
Chalis Din Main Urdu
Richhon Ka Badshah
कहानी
ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा तो इसी घर में गुज़र गया, मगर कभी आराम न नसीब हुआ। मेरे शौहर दुनिया की निगाह में बड़े नेक, ख़ुशखल्क़, फ़य्याज़ और बेदार मग़ज़ होंगे, लेकिन जिस पर गुज़रती है वही जानता है, दुनिया को तो उन लोगों की तारीफ़ में मज़ा आता है जो...
'फ़य्याज़' तू नया है न पी बात मान लेकड़वी बहुत शराब है पानी मिला के पी
जब उन की बज़्म में हर ख़ास ओ आम रुस्वा हैअजीब क्या है अगर मेरा नाम रुस्वा है
क़लम फ़य्याज़ होता था'तलब' बे-रोज़-गारी में
अबस नादानियों पर आप अपनी नाज़ करते हैंअभी देखी कहाँ हैं आप ने नादानियाँ मेरी
न तुम मेरे न दिल मेरा न जान-ए-ना-तवाँ मेरीतसव्वुर में भी आ सकतीं नहीं मजबूरियाँ मेरी
या अल्लाह अगर ये टपका इसी तरह बढ़ता रहा तो अब के भीगना ही पड़ेगा। अम्मां! सर्दी लग रही है। सिद्दीक़ा उस के बराबर लेटी हुई थी। उसने उसी को चिमटा के लिटा दिया। रूई नहीं तो दुई ही सही। उधर दोनों लड़के चिमटे पड़े थे। लिपटे हुए जैसे साँप...
“क़सम ख़ुदा की, आज तुमने तबीयत साफ़ कर दी मेरी। लो ये सौ रुपये का नोट। आज अपने लिए कोई चीज़ ख़रीद लो।” “ये नोट आप पास ही रखिए। मुझे इसकी कोई ज़रूरत नहीं। आप ऐसे लम्हात में बहुत फ़य्याज़ हो जाया करते हैं।”...
“लाहौल-वला-क़ुव्वत…”, मौलाना से फिर चुप न रहा गया। “अ'दील मियाँ आप भी कैसी बातें करते हैं। ख़ुदा-ना-ख़्वासता उन्होंने फ़र्रुख़ भाबी को ये सारी किसी बुरी निय्यत से थोड़ा ही ले के दी है। वो तो हमेशा से ऐसे ही फ़य्याज़ वाक़े' हुए हैं।” “हमें उनकी फ़य्याज़ी की कोई ज़रूरत नहीं।”...
बाज़ लोगों को गाने बजाने से क़ुदरती लगाव होता है। ख़ुद चाहे बे-सुरे ही क्यों न हों मगर सुरीली आवाज़ पर जान देते हैं। राग उन पर जादू का सा असर करता है। रफ़्ता-रफ़्ता वो गाने-बजाने के ऐसे आदी हो जाते हैं जैसे किसी को कोई नशा लग जाए। साहब-ए-सरवत...
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