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तंज़-ओ-मज़ाह
हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था आप आते थे मगर कोई अनाँ-गीर भी था...
सालिहा आबिद हुसैन
ग़ज़ल
कुछ ऐसी बात हो जो मूजिब-ए-तस्कीन-ए-ख़ातिर हो
वो क्या इक़रार है जो बाइस-ए-आज़ार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
रौज़ा-ए-अक़्दस पे आकर क्यों न ठहरें क़ाफ़िले
बाइ'स-ए-तस्कीन-ए-दिल है आस्ताना आप का
शकील इबन-ए-शरफ़
समस्त