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नज़्म
शिकवा
सफ़्हा-ए-दहर से बातिल को मिटाया हम ने
नौ-ए-इंसाँ को ग़ुलामी से छुड़ाया हम ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
सफ़्हा-ए-दहर से बातिल को मिटाया किस ने
नौ-ए-इंसाँ को ग़ुलामी से छुड़ाया किस ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तराना-ए-मिल्ली
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
हम सर-ब-कफ़ उठे हैं कि हक़ फ़तह-याब हो
कह दो उसे जो लश्कर-ए-बातिल के साथ है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जब सब के लब सिल जाएँगे हाथों से क़लम छिन जाएँगे
बातिल से लोहा लेने का एलान करेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
मैं जभी तक था कि तेरी जल्वा-पैराई न थी
जो नुमूद-ए-हक़ से मिट जाता है वो बातिल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नज़्र-ए-अलीगढ़
ज़र्रात का बोसा लेने को सौ बार झुका आकाश यहाँ
ख़ुद आँख से हम ने देखी है बातिल की शिकस्त-ए-फ़ाश यहाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
हो नक़्श अगर बातिल तकरार से क्या हासिल
क्या तुझ को ख़ुश आती है आदम की ये अर्ज़ानी