aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बुढ़िया"
ज़हीन बीकानेरी
born.1979
लेखक
बर्ख़िया एजुकेशन फाउंडेशन, पेशावर
पर्काशक
गेजू भाई बुधिका
बदरिया काज़िम
इंदर यास बशतिया
संपादक
मतबा निज़ामत बलदिया, हैदराबाद
सय्यद बुनियाद अली
सय्यद बुनियाद हुसैन जाह
जी. डी. बेलिया
फरखुंडा बुनियाद हैदराबाद
इंतिशारात बुनियाद-ए-फ़रहंग, ईरान
ख़ानक़ाहे बलखि़या फ़िरदौसिया, नालंदा
योगदानकर्ता
नक़श बन्दिया मंज़िल, लाहौर
वाहिद किताब बुनियाद बेसत, तेहरान
बुनियाद अंदेशा इस्लामी
मोहल्ले की सब से पुरानी निशानीवो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
मोहल्ले की सब से निशानी पुरानीवो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
मैं पुल को पार कर के आगे बढ़ता हूँ। मेरे बेटे और उनकी बीवीयां और बच्चे मेरे पीछे आरहे हैं। वो अलग अलग टोलियों में बटे हुए हैं। यहां पर बादाम के पेड़ों की क़तार ख़त्म हो गई। तल्ला भी ख़त्म हो गया। झील का किनारा है। ये ख़ूबानी का...
फिर एक दिन तो अंधेर ही हो गई। मामूँ बहुत कमज़ोर हो गए थे। बहनें बैठी भावज का दुखड़ा रो रही थीं कि नज्जी बुढ़िया ख़ुदा जाने कहाँ से आन मरी। पहले तो वो शुजाअ'त मामूँ को नाना-जान समझ कर उनसे फ़्लर्ट करने लगी। किसी ज़माने में नाना-जान उस पर...
दहक़ानों की ये मुख़्तसर सी टोली अपनी बे सर-ओ-सामानी से बे-हिस अपनी ख़स्ता हाली में मगर साबिर-ओ-शाकिर चली जाती थी। जिस चीज़ की तरफ़ ताकते ताकते रह जाते और पीछे से बार बार हॉर्न की आवाज़ होने पर भी ख़बर न होती थी। मोहसिन तो मोटर के नीचे जाते जाते...
दो इन्सानों का बे-ग़रज़ लगाव एक अज़ीम रिश्ते की बुनियाद होता है जिसे दोस्ती कहते हैं। दोस्त का वक़्त पर काम आना, उसे अपना राज़दार बनाना और उसकी अच्छाइयों में भरोसा रखना वह ख़ूबियाँ हैं जिन्हें शायरों ने खुले मन से सराहा और अपनी शायरी का मौज़ू बनाया है। लेकिन कभी-कभी उसकी दग़ाबाज़ियाँ और दिल तोड़ने वाली हरकतें भी शायरी का विषय बनी है। दोस्ती शायरी के ये नमूने तो ऐसी ही कहानी सुनाते है।
वाइज़ क्लासिकी शायरी का एक अहम किरदार है जो शायरी के और दूसरे किरदारों जैसे रिंद, साक़ी और आशिक़ के मुक़ाबिल आता है। वाइज़ उन्हें पाकबाज़ी और पारसाई की दावत देता है, शराबनोशी से मना करता है, मय-ख़ाने से हटा कर मस्जिद तक ले जाना चाहता है लेकिन ऐसा होता नहीं बल्कि उस का किरदार ख़ुद दोग़ले-पन का शिकार होता है। वो भी चोरी छुपे मय-ख़ाने की राह लेता है। उन्हें वजूहात की बुनियाद पर वाइज़ को तंज़-ओ-तशनी का निशाना बनाया जाता है और इस का मज़ाक़ उड़ा जाया जाता है। आपको ये शायरी पसंद आएगी और अंदाज़ा होगा कि किस तरह से ये शायरी समाज में मज़हबी शिद्दत पसंदी को एक हमवार सतह पर लाने में मददगार साबित हुई।
कश्ती, साहिल, समुंदर, ना-ख़ुदा, तुंद मौजें इस तरह की दूसरी लफ़्ज़ियात को शायरी में ज़िंदगी की वसी-तर सूरतों को इस्तिआरे के तौर पर बर्ता गया है। कश्ती दरिया की तुग़्यानी और मौजों की शदीद-मार से बच निकलने और साहिल पर पहुँचने का एक ज़रिया है। कश्ती की इस सिफ़त को बुनियाद बना कर बहुत से मज़ामीन पैदा किए गए हैं। कश्ती के हवाले से और भी कई दिल-चस्प जहतें हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
बुढ़ियाبڑھیا
old lady
बक़िया-ए तिलिस्म-ए होशरुबा
मुंशी अहमद हुसैन क़मर
दास्तान
Shumara Number-001
यासमीन हमीद
बुनियाद
कि़स्सा / दास्तान
अकेली बस्तियाँ
महबूब ख़िज़ां
काव्य संग्रह
फ़रख़ंदा बुनियाद हैदराबाद
सय्यद मुहीउद्दीन क़ादरी ज़ोर
सांस्कृतिक इतिहास
मोहब्बत की बुलंदिया
वहीद अहमद
Volume-007
Volume-002, Shumara Number-001
सय्यद नोमानुल हक़
जुमलों की बुनियाद
कुमार पाशी
नाटक / ड्रामा
Ek Tamanna Ek Khwab
एजुकेशन / शिक्षण
Gharagh-e-Rah
Fasana-e-Lazzat
Deewan-e-Dom Jah
दीवान
मशहीर की बीवियां
सय्यद मुबारिज़ुद्दीन रिफ़अत
अन्य
Deewan-e-Dom Jaah
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाएएक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे
शकीला उससे आठ ब्लाउज़ मांग कर लाई थी और काग़ज़ों पर उनके नमूने उतार रही थी। चुनांचे उसने भी कुछ दिनों से मोमिन की तरफ़ ध्यान नहीं दिया था। डिप्टी साहब की बीवी सख़्तगीर औरत नहीं थी। घर में दो नौकर थे यानी मोमिन के इलावा एक बुढ़िया भी थी।...
बलदिया का इजलास ज़ोरों पर था। हाल खचाखच भरा हुआ था और खिलाफ़-ए-मा’मूल एक मेम्बर भी ग़ैर-हाज़िर न था। बलदिया के ज़ेर-ए-बहस मस्अला ये था कि ज़नान-बाज़ारी को शह्र बदर कर दिया जाए क्योंकि उनका वुजूद इन्सानियत, शराफ़त और तहज़ीब के दामन पर बदनुमा दाग़ है। बलदिया के एक भारी...
ग़ालिब: कैसी वबा, जब एक सत्तर बरस के बुड्ढे और सत्तर बरस की बुढ़िया को न मार सके तो तुफ़ है, उस वबा पर। अच्छा, अब मैं बाहर जाता हूँ, तुम्हारे वज़ीफ़े को देर होती होगी। (मूसीक़ी) रावी: शेफ़्ता के मकान पर मेहमान जमा हैं। मुफ़्ती सदर उद्दीन आज़ुर्दा, मौलवी...
बेबी ने एक दो-हत्तड़ दाऊ जी की कमर पर मारा और कहा, "बुड्ढे बरोहा तुझे लाज नहीं आती। तुझ पर बहार फिरे, तुझे यम समेटे, ये तेरे चाय पीने के दिन हैं। मैं बेवा घर में न थी तो तुझे किसी का डर न रहा। तेरे भानएँ में कल की...
1 मुंशी साबिर हुसैन की आमदनी कम थी और ख़र्च ज़्यादा। अपने बच्चे के लिए दाया रखना गवारा नहीं कर सकते थे। लेकिन एक तो बच्चे की सेहत की फ़िक्र और दूसरे अपने बराबर वालों से हेटे बन कर रहने की ज़िल्लत इस ख़र्च को बर्दाश्त करने पर मजबूर करती...
अल्मास बेगम का अगर बस चले तो वो अपने तरहदार शौहर को एक लम्हे के लिए अपनी नज़रों से ओझल न होने दें और वो जवान जहान आया को मुलाज़िम रखने की हरगिज़ क़ाइल नहीं। मगर ताराबाई जैसी बे-जान और सुघड़ ख़ादिमा को देखकर उन्होंने अपनी तजुर्बेकार ख़ाला के इंतिख़ाब...
ज़ुबेदा ने फुल्का चंगेर में रखा, “मैं क्या करूं... बच्चा पैदा नहीं होता तो इसमें मेरा क्या क़ुसूर है।” बुढ़िया ने कहा, “क़ुसूर किसी का भी नहीं बेटी... बस सिर्फ़ एक अल्लाह की मेहरबानी चाहिए।”...
देख के अपना हाल हुआ फिर उस को बहुत मलालअरे मैं बुढ़िया हो जाऊँगी आया न था ख़याल
पाँचवीं साड़ी का किनारा गहरा नीला है। साड़ी का रंग गदला सुर्ख़ है लेकिन किनारा गहरा नीला है और इस नीले में अब भी कहीं-कहीं चमक बाक़ी है। ये साड़ी दूसरी साड़ियों से बढ़िया है क्योंकि ये साढ़े पाँच रुपए चार आने की नहीं है। उसका कपड़ा, उसकी चमक दमक...
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