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ग़ज़ल
इस दश्त-ए-बे-पनाह की हद पर भी ख़ुश नहीं
मैं अपनी ख़्वाहिशों से बिछड़ कर भी ख़ुश नहीं
ज़ीशान साहिल
ग़ज़ल
इक सैल-ए-बे-पनाह की सूरत रवाँ है वक़्त
तिनके समझ रहे हैं कि वहम-ओ-गुमाँ है वक़्त