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ग़ज़ल
'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर भरना भी लुट जाना भी
तुम इस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
शब-ए-ग़म न पूछ कैसे तिरे मुब्तला पे गुज़री
कभी आह भर के गिरना कभी गिर के आह भरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
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नज़्म
पंद्रह अगस्त
जो ज़ख़्म तन पे है भारत के उस को भरना है
जो दाग़ माथे पे भारत के है मिटाना है