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नज़्म
ताज-महल
मुर्दा-शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक मकानों को तो देखा होता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
शाह-ए-मर्दां अमीर-ऊल-मोमिनीन हज़रत-'अली' के पोते
हज़रत इमाम-'हसन' हज़रत इमाम-'हुसैन' के पोते
जौन एलिया
नज़्म
प्यारा वतन हमारा
लर्ज़ा था जिस के बच्चों का नाम सुन के आलम
होता था जिन के आगे शेरों का ख़त्म दम-ख़म
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
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ग़ज़ल
जब नबी-साहिब में कोह-ओ-दश्त से आई बसंत
कर के मुजरा शाह-ए-मर्दां की तरफ़ धाई बसंत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जब नबी-साहिब में कोह-ओ-दश्त से आई बसंत
कर के मुजरा शाह-ए-मर्दां की तरफ़ धाई बसंत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मर्सिया
किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है
रुस्तम का जिगर ज़ेर-ए-कफ़न काँप रहा है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
ग़ज़ल
ला-फ़ता-इल्ला-अली है शान में जिस की नुज़ूल
दोस्ताँ उस शाह-ए-मर्दां से जवाँ को इश्क़ है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अपनी मल्का-ए-सुख़न से
ऐ शम-ए-'जोश' ओ मशअ'ल-ए-ऐवान-ए-आरज़ू
ऐ मेहर-ए-नाज़ ओ माह-ए-शबिस्तान-ए-आरज़ू
जोश मलीहाबादी
मर्सिया
बिलक़ीस पासबाँ है ये किस की जनाब है
मरयम दरूद-ए-ख़्वाँ है ये किस की जनाब है