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शेर
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-हब्बत नहीं होती जिस में
दिल वो मिट्टी का वो मिट्टी का जिगर होता है
जलील मानिकपूरी
शेर
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-हब्बत जो नुमायाँ हो जाए
हर फ़रिश्ते को ये हसरत हो कि इंसाँ हो जाए
निसार यार ज़ंग मिज़ाज
ग़ज़ल
लिपट कर सो रहा हूँ लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-मोहब्बत से
ये इशरत बा'द-ए-मुर्दन ख़ाक में मिलती है क़िस्मत से
एस. नूरुद्दीन अनवर भोपाली
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही से सुकूँ आ जाए है
दिल मिरा उन की नवाज़िश से तो घबरा जाए है
सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर
शेर
यूँ बढ़ी साअत-ब-साअत लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
रफ़्ता रफ़्ता मैं ने ख़ुद को दुश्मन-ए-जाँ कर दिया
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
जो लज़्ज़त-ए-आशना-ए-दर्द-ए-हिज्राँ होते जाते हैं
सर-ए-कू-ए-तमन्ना वो ग़ज़ल-ख़्वाँ होते जाते हैं