aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शर्बत"
शरत चन्द्र चट्रजी
लेखक
शरत चंद्र
शर्बत पे कौन देवेगा प्यासे का फ़ातिहाबोले नबी कि आप को ज़ेहरा न कर हलाक
आशिक़ को देखते हैं दुपट्टे को तान करदेते हैं हम को शर्बत-ए-दीदार छान कर
एक दिन एक देहाती बुढ़िया जो पास के किसी गाँव में रहती थी, इस बस्ती की ख़बर सुन कर आ गई। उसके साथ एक ख़ुर्द साल लड़का था। दोनों ने मस्जिद के क़रीब एक दरख़्त के नीचे घटिया सिगरेट, बीड़ी, चने और गुड़ की बनी हुई मिठाईयों का ख़्वाँचा लगा...
अज़ीज़: हुज़ूर तकलीफ़ न कीजिए। हम सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए उतर पड़े थे। रेल का वक़्त बिल्कुल क़रीब है। बग्घी सराय में खड़ी है, अस्बाब बंधा हुआ रखा है। आपसे मिलने को आए थे, अब इजाज़त चाहते हैं। ग़ालिब: आपकी ग़ायत इस तकलीफ़ से ये थी कि मेरी सूरत...
है सब्र जिन्हें तल्ख़-कलामी को तुम्हारीशर्बत ही बताते हैं सम कह नहीं सकते
शर्बतشربت
syrup drink, beverage
शकर डालकर मीठा किया हुआ पानी जो पिया जाता है, शर्करोदक, दवाओं से बना हुआ शकर का शीरा, सीरप, मिष्टोद।।
Devdas
नॉवेल / उपन्यास
Sharat Chandra : Shakhsiyat Aur Aakhiri Sawal
शरत के बेहतरीन अफ़्साने
अफ़साना
स्वामी
अनुवाद
यादगार-ए-नक़ी
मोहम्मद नक़ी
दीवान
देहाती समाज
शरअत-उल-हक़
सय्यद मुहिब्बुल हक़
अन्य
Brahman Kanya
Biraj Bahu
मेरा बेटा
Kamla
Badi Didi
Thandi Aag
Adhoora Sawal
Kashi Nath
वो चटाई बिछाए कोई किताब पढ़ रहे होते। मैं आहिस्ता से उनके पीछे जा कर खड़ा हो जाता और वो किताब बंद कर के कहते, "गोलू आ गया" फिर मेरी तरफ़ मुड़ते और हंस कर कहते, "कोई गप सुना" और मैं अपनी बिसात के और समझ के मुताबिक़ ढूंढ ढांड...
जिस रोज़ उस मोहलिक इनाद की इब्तिदा हुई उसी रोज़ से बुद्धू ने उस तरफ़ आना तर्क कर दिया था। झींगुर ने उस से रब्त-ज़ब्त बढ़ाना शुरू किया। वो बुद्धू को दिखलाना चाहता था कि तुम पर मुझे ज़रा भी शक नहीं है। एक रोज़ कम्बल लेने के बहाने गया,...
करीम दाद ने मीराँ बख़्श के कांधे से अपना हाथ अलहदा किया और चौधरी नत्थू से मुख़ातिब हुआ, “चौधरी जब किसी को दुश्मन कह दिया तो फिर ये गिला कैसा कि वो हमें भूका-प्यासा मारना चाहता है। वो तुम्हें भूका-प्यासा नहीं मारेगा। तुम्हारी हरी-भरी ज़मीनें वीरान और बंजर नहीं बनाएगा...
मैं दूध बख्शवा भी न पाई कि चल बसींशर्बत बना के लाने न पाई कि चल बसीं
मंटो के मुताल्लिक़ अब तक बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है। इसके हक़ में कम और ख़िलाफ़ ज़्यादा। ये तहरीरें अगर पेश-ए-नज़र रखी जाएं तो कोई साहब-ए-अक़्ल मंटो के मुताल्लिक़ कोई सही राय क़ायम नहीं कर सकता। मैं ये मज़मून लिखने बैठा हूँ और समझता हूँ कि मंटो...
मैं ने तो तुम से की ही नहीं कोई आरज़ूपानी ने कब कहा था कि शर्बत करो मुझे
आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईंतिश्ना-लब हूँ शर्बत-ए-दीदार का
(पेशानी पर पसीने की बूँदें नज़र आने लगती हैं। चेहरे पर मुर्दनी छा जाती है। शेफ़्ता जल्दी से उठकर शर्बत-ए-अनार का चमचा हलक़ में टपकाते हैं। रूह परवाज़ कर जाती है। सब लोगों पर सुकूत तारी होजाता है। नौकर आँखें और मुँह बंद करके चादर उढ़ा देता है।) ...
बीमार तंदुरुस्त हो देखे जो रोए यारक्या चाशनी है शर्बत-ए-दीदार के लिए
आ'शिक़-ए-क़दीम को खाने कमाने की तो कोई फ़िक्र होती नहीं। ग़ालिबन वो ग़म ही को मन-ओ-सल्वा समझ कर खा लिया करता था और ख़ून-ए-जिगर को शरबत-ए-रूह-अफ़्ज़ा समझ कर पी लेता था। लिहाज़ा जब देखे वो हज़रत कूचा-ए-दिलदार ही में पाए जाते थे। जीते जी कूचा-ए-दिलदार से जाया न गया...
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