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ग़ज़ल
ऐ दिल ये है ख़िलाफ़-ए-रस्म-ए-वफ़ा-परस्ती
तौबा बुतों के आगे ज़िक्र-ए-ख़ुदा-परस्ती
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
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ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ख़िलाफ़-ए-रस्म-ए-तग़ज़्ज़ुल ग़ज़ल-सरा हूँ मैं
रुबाब-ए-वक़्त की बिगड़ी हुई सदा हूँ मैं
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
शरीक-ए-रस्म-ए-गिर्या हैं समुंदर-आश्ना आँखें
जहान-ए-आरज़ू में कर न दें महशर बपा आँखें
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
दयार-ए-हुस्न में पाबंदी-ए-रस्म-ए-वफ़ा कम है
बहुत कम है बहुत कम है ब-हद्द-ए-इंतिहा कम है
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
वस्ल की शब भी अदा-ए-रस्म-ए-हिरमाँ में रहा
सुब्ह तक मैं इल्तिमास-ए-शौक़-ए-पिन्हाँ में रहा
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
फिर किसी ज़ख़्म के खुल जाएँ न टाँके देखो
रहने दो तज़्किरा-ए-रस्म-ए-वफ़ा रहने दो
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
बस इसी बात पे वो शख़्स ख़फ़ा है मुझ से
शहर में तज़्किरा-ए-रस्म-ए-वफ़ा है मुझ से