aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शाबाश"
मुस्तफ़ा शाबाश
संपादक
डाॅ. साईमा शाबान
लेखक
मुहम्मद शाबान
पर्काशक
क़मर शाबान नदवी
अनुवादक
“चलिए, लेकिन ये आप से कहे देता हूँ कि दस मिनट से ज़्यादा में बिल्कुल नहीं दबाऊंगा।” “शाबाश... शाबाश।” उसकी बहन उठ खड़ी हुई और सरगमों की कापी सामने ताक़ में रख कर उस कमरे की तरफ़ रवाना हुई जहां वो और मसऊद दोनों सोते थे।...
मरे शेर शाबाश रहमत ख़ुदा की मुझे उस पर बहुत ग़ुस्सा आया। बेसाख़्ता ज़बान से निकला कि हज़रत, अगर ये किसी और असद का शे’र है तो उस पर रहमत ख़ुदा की और अगर मुझ असद का शे’र है तो मुझ पर लानत ख़ुदा की। मेरे शेर और रहमत ख़ुदा...
दाऊ जी बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते जाते थे और कह रहे थे, "बस अब चुप कर शाबाश मेरा अच्छा बेटा। इस वक़्त ये तर्जुमा कर दे, फिर नहीं जगाऊंगा।" आँसुओं का तार टूटता जा रहा था। मैंने जल कर कहा, "आज हरामज़ादे रानो को पकड़ कर...
शाबाश 'दाग़' तुझ को क्या तेग़-ए-इश्क़ खाईजी करते हैं वही जो मर्दाने आदमी हैं
जब उस ने करवट बदली तो नरायन ने कहा, “शाबाश!” पेशतर इसके कि जानकी कोई मुज़ाहमत करे नरायन ने एक हाथ से उसकी शलवार नीचे खिसकाई और मुझसे कहा, “स्पिरिट लगाओ!”...
शाबाशشاباش
bravo
'शादवाश' का लघु., प्रोत्सा- हन देने और हिम्मत बढ़ानेवाला एक शब्द जो बड़े लोग छोटों के अच्छा काम करने पर कहते है।
Navin Panjabi Nazm Wich Sufiyana Unsur
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
सब टेंट और कुर्सियों वाले कमा गएशाइ'र ने ठूँस कर भरी शाबाश जेब में
बासित ने उसको और प्यार किया और कहा, “तुम्हें हर वक़्त हंसती रहना चाहिए… लो, अब ज़रा हंसो… हंसो मेरी जान।” सईदा ने हँसने की कोशिश की। बासित ने प्यार से उसको थपकी दी, “शाबाश!... इसी तरह मुस्कुराता चेहरा होना चाहिए हर वक़्त!”...
फिर आज़ादी की रात आई। दीवाली पर भी ऐसा चिराग़ां नहीं होता क्योंकि दीवाली पर तो सिर्फ दीए जलते हैं। यहां घरों के घर जल रहे थे। दीवाली पर आतिश-बाज़ी होती है, पटाख़े फूटते हैं। यहां बम फट रहे थे और मशीन गनें चल रही थीं। अंग्रेज़ों के राज में...
मगर मैं बहुत देर तक इन अफ़्सानों की दुनिया में न रह सका। उस वक़्त तक दोनों अदीब विस्की की बोतल आधी के लगभग ख़त्म कर चुके थे। मन्नान के ख़्याल में क़िस्म-क़िस्म की शराब को मिलाकर पीने की धुन समाई। चुनांचे जुम्मन मियां ने बहुत सी बोतलों से एक-एक...
कोई पौन घंटे के बा'द मौलाना की आवाज़ सीढ़ियों में सुनाई दी। वो किसी को सँभल-सँभल कर आने की ताकीद कर रहे थे। ये होटल का एक बैरा था। जो एक बड़ा सा ख़्वान अपने कंधे पर उठाए उनके पीछे पीछे आ रहा था। “इधर ले आओ भई इस कमरे...
जब तमाशाइयों के पुर-शोर आवाज़ ने... हुर्रा सागर... शाबाश ज़ाकिर... बक अप मजीद और मोहन सिंह जा मिलो... और तालियाँ और फिर शोर... एक क़यामत का शोर... गोल गोल गोल... और फ़िज़ा में नाचती हुई... सीटियाँ थम गईं और एक तवील विसल बजी और खिलाड़ी आगे पीछे दो क़तारों में...
"फिर ज़र्ब लगाओ।" अब के आवाज़ कुछ बेहतर थी। "शाबाश! बस यूँ ही ज़रबें लगाते रहो। लो अब बायाँ हाथ सरोद के नीचे से निकाल लो। यों। अब पहली उंगली से यूँ इस तार को दबाओ। और दाहिने हाथ से ज़र्ब लगाओ। देखा एक नई आवाज़ पैदा हुई।"...
सबक़ शुरू होने का ख़्याल मुझे अच्छा नहीं मालूम हुआ था इसलिए दूसरे दिन मैं अपने बाप से ख़फ़ा-ख़फ़ा सा रहा, लेकिन शाम होते होते मुझे अपने उस्ताद के बारे में तजस्सुस पैदा हुआ, और तीसरे दिन में अपने बाप के पीछे पीछे क़दरे इश्तियाक़ के साथ मछलियों वाले दरवाज़े...
मुझे वो रात नहीं भूलती जब भगत राम की बीवी के हाँ बच्चा होने वाला था। सुबह ही से भगत राम ने हमारे घर के चक्कर लगाने शुरू किए थे, मेरी माँ की मिन्नतें की थीं, और उसके पाँव पर अपना माथा टेक कर कहा था “तुम चलोगी माँ तो...
हवा का ठंडा झोंका फ़क़ीरा के कलेजे को बर्माता निकल गया। उसके कंधे का बाँस काँपा। किसी वजह से घसीटे घबरा कर फ़क़ीरा की जगह ख़ुद बोल उठा, “शबरातन का हाल ख़राब है। अम्मां को लिये वहां जा रहे हैं”। “अम्मां को लिए?” किसान इतना मुतास्सिर हुआ कि बे-इख़्तियार कह...
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