aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सताएगी"
अल्का सरावगी
लेखक
ग़ुलाम हुसैन साएदी
1936 - 1985
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैंसुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
न ऐसी ख़ुश-लिबासियाँकि सादगी गिला करे
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदालड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
“अभी सुस्ताने का मुक़ाम नहीं आया। मेरे इरादों में थकावट उस दिन पैदा होगी जब तुम्हें घर की याद सताएगी। और मुझे मजबूर करोगी कि तुम्हें घर छोड़ आऊँ लेकिन घर हमारे लिए उस वक़्त तक तंग है जब तक हमें सोचने और समझने की आज़ादी नहीं दी जाती।” “घर...
अभी तमाम कमरा साफ़ करना था और वक़्त बहुत कम रह गया था। चुनांचे क़ासिम ने जल्दी जल्दी कुर्सीयों पर झाड़न मारना शुरू किया। कुर्सीयों का काम ख़त्म करने के बाद वो मेज़ साफ़ करने के लिए बढ़ा तो उसे ख़याल आया, आज मेहमान आरहे हैं। ख़ुदा मालूम कितने बर्तन...
गाँव हर उस शख़्स के नासटेलजाई में बहुत मज़बूती के साथ क़दम जमाए होता है जो शहर की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया हो। गाँव की ज़िंदगी की मासूमियत, उस की अपनाइयत और सादगी ज़िंदगी भर अपनी तरफ़ खींचती है। इन कैफ़ियतों से हम में से बेश्तर गुज़रे होंगे और अपने दाख़िल में अपने अपने गाँव को जीते होंगे। ये इन्तिख़ाब पढ़े और गाँव की भूली बिसरी यादों को ताज़ा कीजिए।
सादगी ज़िंदगी गुज़ारने के अमल में इख़्तियार किया जाने वाला एक रवय्या है। जिस के तहत इंसान ज़िंदगी के फ़ित्री-पन को बाक़ी रखता है और उस की ग़ैर-ज़रूरी आसाइशों, रौनक़ों और चका चौंद का शिकार नहीं होता। शेरी इज़हार में सादगी के इस तसव्वुर के अलावा उस की और भी कई जहतें हैं। ये सादगी महबूब की एक सिफ़त के तौर पर भी आई है कि महबूब बड़े से बड़ा ज़ुल्म बड़ी मासूमियत और सादगी के साथ कर जाता है और ख़ुद से भी उस का ज़रा एहसास नहीं होता है। सादगी के और भी कई पहलू है। हमारे इस इंतिख़ाब में पढ़िए।
उर्दू शायरी का माशूक़ अपनी सादगी में भी उतना ही हसीन लगता है जितना सोलह सिंगार करने के बाद। मेंहदी वो सिंगार है जिसे शायरों ने कभी आशिक़ का ख़ून कह कर तो कभी न आने के बहाने के तौर पर शायरी मे पिरोया है। हिना की दिलकशी ने सिर्फ़ महबूब को ही नहीं उर्दू शायरी को भी हुस्न की दौलत से मालामाल किया है। हिना की सुर्ख़ी के पर्दे में शायर को क्या-क्या नज़र आता है यह जानने के लिए हिना शायरी का यह इन्तिख़ाब आप की नज़्रः
सताएगीستائے گی
will nag/pester/trouble/tease
Kali Katha : Waya Bypass
नॉवेल / उपन्यास
Kali Katha Waya Bypass
छलकते जाम में भीगी हुई आँखें उतर आईंसताएगी किसी दिन याद-ए-याराँ हम न कहते थे
मैं ने सोचा कि सताएगी बहुत प्यास मुझेपी गया झोंक में बस आ के समुंदर सारा
सूने सावन में सताएगी बहुत पुर्वाईदर्द को दिल में मगर अपने दबाए रखना
भुला दो मुझ को लेकिन याद रखनासताएगी तुम्हें भी याद मेरी
किसी को अब न सताएगी मर्ग-ए-ना-मालूमचराग़-ए-दार जले मौसम-ए-सलीब आया
पेट है अगर ख़ाली फिर कहाँ की ख़ुद्दारीभूक जब सताएगी ख़ुद को बेच खाएगा
आँसू की एक बूँद, जो हल्दी की आँख में अटकी हुई थी, उसके गाल पर टपक पड़ी। परे आसमान पर बादल जमा हो रहे थे। मैंने कहा, "आज ज़रूर धरती पर पानी बरसेगा।" हल्दी ख़ामोशी से अपने बच्चे को थपकने लगी। शायद वो सोच रही थी कि क्या हुआ अगर...
क़दम क़दम पे जहालत उसे सताएगीजो दूर हो गया ता'लीम और तअल्लुम से
दर्द देगी ख़ून के आँसू रुलाएगी मुझेज़िंदगी तू और किस हद तक सताएगी मुझे
मुझे सताएँगी क्या गर्दिशें ज़माने कीमैं कल के बारे में ऐ दोस्त सोचता ही नहीं
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