सादगी शायरी
सादगी ज़िंदगी गुज़ारने के अमल में इख़्तियार किया जाने वाला एक रवय्या है। जिस के तहत इंसान ज़िंदगी के फ़ित्री-पन को बाक़ी रखता है और उस की ग़ैर-ज़रूरी आसाइशों, रौनक़ों और चका चौंद का शिकार नहीं होता। शेरी इज़हार में सादगी के इस तसव्वुर के अलावा उस की और भी कई जहतें हैं। ये सादगी महबूब की एक सिफ़त के तौर पर भी आई है कि महबूब बड़े से बड़ा ज़ुल्म बड़ी मासूमियत और सादगी के साथ कर जाता है और ख़ुद से भी उस का ज़रा एहसास नहीं होता है। सादगी के और भी कई पहलू है। हमारे इस इंतिख़ाब में पढ़िए।
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
हम भी सादा हैं इसी चाल में आ जाते हैं
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
From her I hope for constancy
who knows it not, to my dismay
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हँसी आ रही है तिरी सादगी पर
वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
fealty I seek from you, O my faithless friend
behold my innocence and, see what I intend
तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी ज़ेवर
तुम्हें कोई ज़रूरत ही नहीं बनने सँवरने की
मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मअ'नी
ये तिरी सादा-दिली मार न डाले मुझ को
है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार
सादगी गहना है इस सिन के लिए
youthfullness is itself an ornament forsooth
innocence is the only jewel needed in ones youth
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया
हाजत नहीं बनाओ की ऐ नाज़नीं तुझे
ज़ेवर है सादगी तिरे रुख़्सार के लिए
ब-ज़ाहिर सादगी से मुस्कुरा कर देखने वालो
कोई कम-बख़्त ना-वाक़िफ़ अगर दीवाना हो जाए