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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
अल्लामा इक़बाल
शेर
इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद
ख़ुद-बख़ुद दिल में है इक शख़्स समाया जाता
अल्ताफ़ हुसैन हाली
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तंज़-ओ-मज़ाह
पतरस बुख़ारी
ग़ज़ल
ये बार-ए-ग़म-ए-इश्क़ समाया है कि 'नासिख़'
है कोह से दह-चंद गिरानी मिरे दिल की
इमाम बख़्श नासिख़
नज़्म
ये कौन आया
ऐ शख़्स जो तू आकर यूँ दिल में समाया है
तू दर्द कि दरमाँ है तो धूप कि साया है?