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कहानी
मुनज़्ज़ा एहतिशाम गोंदल
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ग़ज़ल
मुनाफ़िक़ों को सराहता हूँ मुनाफ़िक़त से
शरीफ़ शाइ'र भी अब कमीनों से जा मिला है
मन्नान क़दीर मन्नान
नज़्म
रम्ज़
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं
जौन एलिया
ग़ज़ल
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं