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नज़्म
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
कौन बतलाएगा मुझ को किसे जा कर पूछूँ
ज़िंदगी क़हर के साँचों में ढलेगी कब तक
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जुगनू
निगाह-ए-शौक़ के साँचों में रोज़ ढलता हुआ
सुना है रावियों से दीदनी थी उस की उठान
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मादाम
मुफ़्लिसी हिस्स-ए-लताफ़त को मिटा देती है
भूक आदाब के साँचों में नहीं ढल सकती
साहिर लुधियानवी
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नज़्म
नज़्म
हमें मा'लूम है कि अगले वक़्तों में ये लोग
तिरे पैरों के साँचों से नई सम्तों के अंदाज़े लगाएँगे
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
बदल जाते हैं दिल हालात जब करवट बदलते हैं
मोहब्बत के तसव्वुर भी नए साँचों में ढलते हैं
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं
बात जो दिल में है मेरे मेरे लफ़्ज़ों में नहीं
आफ़ताब हुसैन
नज़्म
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स
तेरे रहबर तुझे मरने के लिए छोड़ चले
अर्ज़-ए-बंगाल! उन्हें डूबती साँसों से पुकार