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तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
ग़ज़ल
ग़ज़ल-सराई-ए-'मंशा' पे यूँ हुआ महसूस
कि जैसे रूह के अंदर समो गए अल्फ़ाज़
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दौलत-ए-दीदार हस्ब-ए-मुद्दआ हासिल हुई
मिल गई जिस शख़्स को तक़दीर से इक्सीर-ए-इश्क़