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ग़ज़ल
अबलक़-ए-चश्म-ए-सनम किस नाज़ से गर्दिश में है
ख़ूब कावे होते हैं रहवार आँखें हो गईं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
नज़्म
पूरा चाँद निकलता है तो भेड़िया अक्सर रोता है
भैंस के कान से काला कव्वा जूएँ चुगता जाता है
बोली भैंस कि ''ऐ कव्वे क्यूँ मेरे कान तू खाता है''
जमील उस्मान
ग़ज़ल
नक़्श उस का भी किया दौर-ए-फ़लक ने बातिल
थी जो कावे के अलम से बंधी इक़बाल की खाल