aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".dawn"
दावा अकेडमी, इस्लामाबाद
पर्काशक
अलेक्जेन्डर ड्यूमस
1802 - 1870
लेखक
पंडित चाँद नरायण राज़दाँ मोनिस
हिंदुस्तानी दवा घर, अमृतसर
दाऊंदयाल गुप्त
देसी दवा खाना, हैदराबाद
हिंदुस्तानी दवा ख़ाना, दिल्ली
अर्निस्ट डी डैन
मुम्ताज़ दवा ख़ाना, दिल्ली
किताब दां, लखनऊ
यूनानी दवा ख़ाना प्रेस, इलाहाबाद
रमेश एम. दवे
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्यादाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैंवफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या हैआख़िर इस दर्द की दवा क्या है
एक से बढ़ कर एक थे दाँव शराफ़त केजीत मगर हम से कतरा कर बैठ गई
Unreal CityUnder the Brown Fog of a Winter Dawn
उर्दू शायरी में बसंत कहीं-कहीं मुख्य पात्र के तौर पर सामने आता है । शायरों ने बहार को उसके सौन्दर्यशास्त्र के साथ विभिन्न और विविध तरीक़ों से शायरी में पेश किया है ।उर्दू शायरी ने बसंत केंद्रित शायरी में सूफ़ीवाद से भी गहरा संवाद किया है ।इसलिए उर्दू शायरी में बहार को महबूब के हुस्न का रूपक भी कहा गया है । क्लासिकी शायरी के आशिक़ की नज़र से ये मौसम ऐसा है कि पतझड़ के बाद बसंत भी आ कर गुज़र गया लेकिन उसके विरह की अवधि पूरी नहीं हुई । इसी तरह जीवन के विरोधाभास और क्रांतिकारी शायरी में बसंत का एक दूसरा ही रूप नज़र आता है । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आप बहार के इन्हीं रंगों को महसूस करेंगे ।
ज़लज़ला एक क़ुदरती आफ़त है जिससे बाज़-औक़ात बड़ी बड़ी इन्सानी तबाहिया हो जाती हैं और इन्सान की अपनी सी सारी तैयारियाँ यूँ ही धरी रह जाती हैं। हमारे मुन्तख़ब-कर्दा ये शेर क़ुदरत के मुक़ाबले में इन्सानी कमज़ोरी और बेबसी को भी वाज़ेह करते हैं और साथ ही इस बेबसी से फूटने वाले इन्सानी एहतिजाज और ग़ुस्से को भी।
बुढ़ापा उम्र का वह हिस्सा है जब पुराने पत्ते नई कोंपलों को रास्ता देने की तैयारी शुरू कर देते हैं। माज़ी या अतीत के बहुत सारे पल अच्छे बुरे तजुर्बों की धूप-छाँव की तरह याद आते हैं और शायरी ऐसे ही जज़्बों की तर्जुमानी में करामात दिखाती है। उम्र के आख़िरी लम्हों में जिस्म और उस से जुड़ी दुनिया में सूरज के ढलने जैसा समाँ होता है जिसे शायरों ने अपने-अपने नज़रिये से देखा और महसूस किया है। पेश है एक झलक बुढ़ापा शायरी कीः
देवेंدیویں
give
दीवानدیوان
a royal court, a secretary, a dias or cushioned platform, collection of ghazals
देवओंدیوؤں
Deities
दा'वोंدعووں
claims
Unani Dawa Sazi
हकीम मोहम्मद मस्तान अली
तिब्ब-ए-यूनानी
रौशन दान
जावेद सिद्दीक़ी
परिचय
Chand Mashhoor Tabeeb Aur Science Daan
अननोन ऑथर
शख़्सियत
मारूफ़ मुस्लिम साइंसदान
मोहम्मद इकराम चुग़ताई
इस्लामियात
Dawa Ka Intikhab
दास बिशम्बर
औषिधि
Hama Dan Tabeeb
हकीम भगत राम
औषधि
Jadeed Unani Dawa Sazi
हकीम जि़ल्लुर्रहमान
Dain Aur Dusre Afsane
शकीला अख़्तर
अफ़साना
Dawa-ul-Gharb
मोहम्मद फ़िरोज़ुद्दीन
Saidala Sanat Dawa Sazi
हकीम मोहम्मद कबीरुद्दीन
Sukhan Dan-e-Faras
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
भाषा विज्ञान
Maqbool Duain
मोहम्मद अब्दूल हई
Compounders Guide
सय्यद मुम्ताज़ हुसैन
Jaibi Dawa Khana
महा नन्द
Sharah Deewn-ul-Hamasa
अली अहमद बिन मोहम्मद बिन अल-हसन अल-मर्ज़ूक़ी
بارات کے آنے سے پہلے ہی اسے عنادل کا ایس ایم ایس آ گیا کہ وہ کمپنی کی کسی میٹنگ میں اپنے باس کی مصروفیت کی وجہ سے اس کی نمائندگی کرنے لاہور جا رہا ہے۔ کل وہ دفتر سے سیدھے گھر آئےگا۔ وہ سب کو بتا دے کہ اس کا انتظار نہ کیا جائے محاسن کا دل چاہا کہ اس کی اس بہانے بازی پر وہ فون کرکے اسے بےنقط کی سنائے اور جتلا دے کہ وہ اپنے یار کے ساتھ غلاظت کے کس دھن...
A prophet is not required to predict that in a few years more, the gleam of learning in the day of Hastings and Jones will be totally eclipsed by that precious dawn in the Eastern love apparent now and which will then break forth with the meridian splendor to promote and confirm the happiness and prosperity of the British India۔
On the other side, Nal also kept wandering aimlessly. During his wandering from place to place, he happened to see a snake surrounded by fire and helped it out of fire to save its life. However, strangely enough, the snake bit him. This turned him into a black and dwarf human being. Seeing Nal in pain, the snake told him that it was only for his go...
गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन मेंयहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जानादर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
न दवा-ए-दर्द-ए-जिगर हूँ मैं न किसी की मीठी नज़र हूँ मैंन इधर हूँ मैं न उधर हूँ मैं न शकेब हूँ न क़रार हूँ
मैं ख़ुदा का नाम ले कर पी रहा हूँ दोस्तोज़हर भी इस में अगर होगा दवा हो जाएगा
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिएदो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
फिर पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल को चला है इश्क़सामान-ए-सद-हज़ार नमक-दाँ किए हुए
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम कियादेखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
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