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नज़्म
फ़रमान-ए-ख़ुदा
उठ्ठो मिरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
काख़-ए-उमरा के दर ओ दीवार हिला दो
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
आँसू थे सो ख़ुश्क हुए जी है कि उमडा आता है
दिल पे घटा सी छाई है खुलती है न बरसती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
अब तो उस सूने माथे पर कोरे-पन की चादर है
अम्मा जी की सारी सज-धज सब ज़ेवर थे बाबू जी