aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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आह संभली
लेखक
सफ़दर आह सीतापुरी
1903 - 1980
शायर
रजत गुप्ता अहद
1993 - 2020
मक्तबा अल-हसनात, रामपुर यू.पी.
पर्काशक
मतबा अहल-ए-सुन्नत व जमाअत, बरैली
कुतुब ख़ाना रहीमिया, देवबंद, यू.पी.
मतबा अहल-ए-सुन्नत बर्क़ी प्रेस, मुरादाबाद
मतबा अहद-ए-आफ़रीं, हैदराबाद
एदारा अहल-ए-सुन्नत व जमात, हैदराबाद
मकतबा अहले सुन्नत वलजमाअत, दिल्ली
रिंक ऐहा पूरी
अहल-ए-हदीस अकादमी कश्मीरी, लाहौर
डॉ. ए. एच. इविंग
जामिया अहल-ए-सुन्नत हज़रत टीपू सुल्तान शहीद
मदरसा अहले सुन्नत ज़िया- उल-उलूम,यु.पी
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों सेसो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं
किया था अह्द जब लम्हों में हम नेतो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनामवो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
जो अहद ही कोई न होतो क्या ग़म-ए-शिकस्तगी
और क्या देखने को बाक़ी हैआप से दिल लगा के देख लिया
दो इन्सानों का बे-ग़रज़ लगाव एक अज़ीम रिश्ते की बुनियाद होता है जिसे दोस्ती कहते हैं। दोस्त का वक़्त पर काम आना, उसे अपना राज़दार बनाना और उसकी अच्छाइयों में भरोसा रखना वह ख़ूबियाँ हैं जिन्हें शायरों ने खुले मन से सराहा और अपनी शायरी का मौज़ू बनाया है। लेकिन कभी-कभी उसकी दग़ाबाज़ियाँ और दिल तोड़ने वाली हरकतें भी शायरी का विषय बनी है। दोस्ती शायरी के ये नमूने तो ऐसी ही कहानी सुनाते है।
इश्क़ बहुत सारी ख़्वाहिशों का ख़ूबसूरत गुलदस्ता है। दीदार, तमन्ना का ऐसा ही एक हसीन फूल है जिसकी ख़ुश्बू आशिक़ को बेचैन किए रखती है। महबूब को देख लेने भर का असर आशिक़ के दिल पर क्या होता है यह शायर से बेहतर भला कौन जान सकता है। आँखें खिड़की, दरवाज़े और रास्ते से हटने का नाम न लें ऐसी शदीद ख़्वाहिश होती है दीदार की। तो आइये इसी दीदार शायरी से कुछ चुनिंदा अशआर की झलक देखते हैः
मुस्कुराहट को हम इंसानी चेहरे की एक आम सी हरकत समझ कर आगे बढ़ जाते हैं लेकिन हमारे इन्तिख़ा कर्दा इन अशआर में देखिए कि चेहरे का ये ज़रा सा बनाव किस क़दर मानी-ख़ेज़ी लिए हुए है। इश्क़-ओ-आशिक़ी के बयानिए में इस की कितनी जहतें हैं और कितने रंग हैं। माशूक़ मुस्कुराता है तो आशिक़ उस से किन किन मानी तक पहुँचता है। शायरी का ये इन्तिख़ाब एक हैरत कदे से कम नहीं इस में दाख़िल होइये और लुत्फ़ लीजिए।
Aap Beeti Allama Iqbal
डॉ. ख़ालिद नदीम
आत्मकथा
Meer Ki Aap Beeti
मीर तक़ी मीर
Aap Se Kya Parda
इब्न-ए-इंशा
मज़ामीन / लेख
Aap Musafir Aap Hi Manzil
मोमिन इक़बाल उस्मान
अशआर
आप बीती
ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खां
Ahd-e-Wusta Ka Hindustan
सतीश चंद्र
भारत का इतिहास
Gilchrist Aur Uska Ahd
मोहम्मद अतीक़ सिद्दीक़ी
आलोचना
घुंगरू टूट गए
क़तील शिफ़ाई
Aap Ka Saadat Hasan Manto
सआदत हसन मंटो
पत्र
Attharahvin Sadi Mein Hindustani Muasharat
मोहम्मद उमर
Aap Beeti
अब्दुल माजिद दरियाबादी
Nazeer Akbarabadi Unka Ahd Aur Shayari
अबुल्लैस सिद्दीक़ी
शायरी तन्क़ीद
Tareekh-e-Hind
ज़फ़र अहमद निज़ामी
Urdu Tahqeeq Ka Ahd-e-Zarrin
मोहम्मद अकमल
शोध
हरबंस मुखिया
राजनीतिक आंदोलन
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़ममक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तककौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिनसाँस जो चल रही है आरी है
बावजूद-ए-इद्दिया-ए-इत्तिक़ा 'हसरत' मुझेआज तक अहद-ए-हवस का वो फ़साना याद है
सुनो ज़िक्र है कई साल का कि किया इक आप ने वा'दा थासो निबाहने का तो ज़िक्र क्या तुम्हें याद हो कि न याद हो
उस की उमीद-ए-नाज़ का हम से ये मान था कि आपउम्र गुज़ार दीजिए उम्र गुज़ार दी गई
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैंज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता
तिरी नाज़ुकी से जाना कि बँधा था अहद बोदाकभी तू न तोड़ सकता अगर उस्तुवार होता
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ाइक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा
आप के बा'द हर घड़ी हम नेआप के साथ ही गुज़ारी है
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