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नज़्म
कभी कभी
घनेरी ज़ुल्फ़ों के साए में छुप के जी लेता
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
वाँ दिल में कि सदमे दो याँ जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है