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नज़्म
शिकवा
तुझ से सरकश हुआ कोई तो बिगड़ जाते थे
तेग़ क्या चीज़ है हम तोप से लड़ जाते थे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वो लड़ कर भी सो जाए तो उस का माथा चूमूँ मैं
उस से मोहब्बत एक तरफ़ है उस से झगड़ा एक तरफ़
वरुन आनन्द
समस्त
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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कनीज़
हुज़ूर होंट इस तरह से कपकपा रहे हैं क्यूँ
हुज़ूर आप हर क़दम पे लड़-खड़ा रहे हैं क्यूँ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं