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ग़ज़ल
उन ही ज़ख़्मों ने हमें सौंपी कराहें ऐ 'कुँवर'
जिन के मुँह हम आँसुओं के नीर से धोते रहे
कुंवर बेचैन
नज़्म
पनघट की रानी
सर से पा तक शोख़ी की वो इक रंगीं तस्वीर
पनघट बेकुल जिस की ख़ातिर चंचल जमुना नीर
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
खोल के घूँघट के पट प्यार से करती है प्रणाम मुझे
भोर भए जब नीर भरन को वो पनघट पर आती है