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तंज़-ओ-मज़ाह
सआदत हसन मंटो
ग़ज़ल
किसे मा'लूम क्या होगा मआल आइंदा नस्लों का
जवाँ हो कर बुज़ुर्गों की रिवायत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
तंज़-ओ-मज़ाह
जब मैं इस दुनिया में था तो मैंने बेचैन हो कर एक बार कहा था, मौत का एक दिन मुअय्यन है...