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ग़ज़ल
सतवत-ए-क़ैसराना को शौकत-ए-ख़ुसरवाना को
जाम-ए-शराब-ए-इश्क़ से होंट मिला के भूल जा
सिराजुद्दीन ज़फ़र
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ग़ज़ल
कहीं इस फूटे-मुँह से बेवफ़ा का लफ़्ज़ निकला था
बस अब ता'नों पे ता'ने हैं कि बे-शक बा-वफ़ा तुम हो