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नज़्म
ऑनलाइन आशिक़
नेट पे लोग जो नव्वे से पलस होते हैं
बैठे रहते हैं वो टस होते हैं न मस होते हैं
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
एक धुँदला सा तसव्वुर है कि दिल भी था यहाँ
अब तो सीने में फ़क़त इक टीस सी पाता हूँ मैं
आग़ा हश्र काश्मीरी
शेर
इक टीस जिगर में उठती है इक दर्द सा दिल में होता है
हम रात को रोया करते हैं जब सारा आलम सोता है
ज़िया अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
क़ीमत में उन के गो हम दो जग को दे चुके अब
उस यार की निगाहें तिस पर भी सस्तियाँ हैं