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नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
चाँद कहता था नहीं अहल-ए-ज़मीं है कोई
कहकशाँ कहती थी पोशीदा यहीं है कोई
अल्लामा इक़बाल
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विषय
अहवाल
अहवाल शायरी
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ग़ज़ल
हम भी देखेंगे कोई अहल-ए-नज़र है कि नहीं
याँ से जब हम रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
नज़्म
फ़र्ज़ करो
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
है अहल-ए-दिल के लिए अब ये नज़्म-ए-बस्त-ओ-कुशाद
कि संग-ओ-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ाद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)
बदल चुका है बहुत अहल-ए-दर्द का दस्तूर
नशात-ए-वस्ल हलाल ओ अज़ाब-ए-हिज्र हराम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वो नवा-ए-मुज़्महिल क्या न हो जिस में दिल की धड़कन
वो सदा-ए-अहल-ए-दिल क्या जो अवाम तक न पहुँचे