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ग़ज़ल
हुजूम-ए-ग़म्ज़ा-ओ-ख़ैल-ए-करिश्मा लश्कर-ए-नाज़
अजब सिपाह से ठहरा मुक़ाबला दिल का
ममनून निज़ामुद्दीन
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नज़्म
साल-ए-नौ का हंगामा
धावा सिपाह-ए-जब्र का है ख़ैल-ए-सब्र पर
तोप और तुफ़ंग की है क़लम और ज़बाँ से जंग
ज़फ़र अली ख़ाँ
ग़ज़ल
हैं खेल सब मुनाफ़ी-ए-शौकत कि अहल-ए-जाह
रह जाते हैं शिकार में ख़ैल-ओ-हशम से दूर
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
इश्क़-ए-बे-परवा भी अब कुछ ना-शकेबा हो चला
शोख़ी-ए-हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तुर्फ़ा फ़ुसूँ-सरिश्त है चश्म-ए-करिश्मा-संज-ए-यार
लेती है इक निगाह में सब्र भी और क़रार भी