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परिणाम "KHayaal-e-husn"
दफ़्तर हुस्न-ए-ख़्याल, भोपाल
पर्काशक
हुसन-ए-ख़्याल कम्पनी, अमृतसर
ख़याल-ए-हुस्न-ए-बे-मिसाल दस्तरस में आ गयाख़ुदी पे इख़्तियार मेरा पेश-ओ-पस में आ गया
ख़याल-ए-हुस्न में यूँ ज़िंदगी तमाम हुईहसीन सुब्ह हुई और हसीन शाम हुई
ख़याल-ए-हुस्न ज़रूरी है ज़िंदगी के लिएचराग़ ले लो अंधेरे में रौशनी के लिए
है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़यालख़ुल्द का इक दर है मेरी गोर के अंदर खुला
ख़याल-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत लिहाज़-ए-अह्द-ए-वफ़ादिल-ओ-नज़र को जगाए कि जैसे सेहर किया
Husn-e-Khayal
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
भाषा एवं साहित्य
Shumara Number-000
मोहम्मद रज़ीउल हसन रज़ी काकोरवी
हुस्ने-ख़याल
सरशार कसमनडवी
संकलन
Nov 1956हुस्ने-ख़याल
काव्य संग्रह
Shumara Number-005
Dec 1926हुस्ने-ख़याल
ऐ 'ख़याल' आइना-ए-हुस्न-ए-मुजस्सम की क़समख़ाक पर बैठ के मैं साहब-ए-अफ़्लाक हुआ
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगीएहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
फिर 'ख़याल'-ए-सितम-ज़दा में कोईख़ुश्बू-अंगेज़ मिस्ल-ए-लाला है
मैं रिवायात से बाग़ी तो नहीं हूँ लेकिनतुम से मुमकिन हो तो तब्दील-ए-ख़यालात करो
जिस पर निगाह ठहरी जान-ए-'ख़याल' अपनीवो अजनबी है लेकिन लगता है आश्ना सा
रक़्स-ए-नैरंगी है नज़्ज़ारों के बीचजी रहा हूँ शोबदा-कारों के बीच
मैं हूँ फ़सुर्दा शाम की अफ़्सुर्दगी है औरधुँदला सा अक्स-ए-यार है यादों की भाप पर
रोज़ आँखों को नया तर्ज़-ए-सुख़न मिलता हैरोज़ जाता हूँ किसी यार-ए-तरह-दार के पास
वाबस्ता तुझ से अज़मत-ए-शेअर-ओ-सुख़न हुईइस बात को भी रखना 'ख़याल' अपने ध्यान में
है म'अरका-आरा जो 'ख़याल' आज ब-ज़ाहिररखता है पस-ए-तैश गुज़ारिश का इरादा
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