aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aa.nkh"
अंश प्रताप सिंह ग़ाफ़िल
born.1993
शायर
राम सरूप अणखी
1932 - 2010
इंक लिंक्स पब्लिशिंग हाउस पानपुर श्रीनगर कश्मीर
पर्काशक
अंक़ा पब्लिशिंग
प्रिन्टालेगी इंक, न्यू दिल्ली
आंश बुक डिपो, दिल्ली
प्रिंटोलॉजी इंक, दिल्ली
शाह मक़सूद मोहम्मद सादिक़ उनक़ा
लेखक
आंग सान सू की
मोनार्क मेनुफेक्चरिंग कंपनी बदायूं
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैंसो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइलजब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगावक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
तपिश-अंदोज़ है इस नाम से पारे की तरहग़ोता-ज़न नूर में है आँख के तारे की तरह
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखोज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
दिल के खज़ाने में नाकाम ख़्वाहिशों की कभी कमी नहीं रहती। ये हसरतें यादों की शक्ल में उदास करने के बहाने ढूंढती रहती हैं। उर्दू की क्लासिकी शायरी इन हसरतों के बयान से भरी पड़ी है। ज़िन्दगी के किसी न किसी लम्हे में शायर उस दौर को लफ़्ज़ देना नहीं भूलता जब हसरतें ही उसकी ज़िन्दगी का वाहिद सहारा रह गई हों। हसरत शायरी का यह इन्तिख़ाब पेश हैः
वहम एक ज़हनी कैफ़ियत है और ख़याल-ओ-फ़िक्र का एक रवैया है जिसे यक़ीन की मुतज़ाद कैफ़ियत के तौर पर देखा जाता है। इन्सान मुसलसल ज़िंदगी के किसी न किसी मरहले में यक़ीन-ओ-वहम के दर्मियान फंसा होता है। ख़याल-ओ-फ़िक्र के ये वो इलाक़े हैं जिनसे वास्ता तो हम सब का है लेकिन हम उन्हें लफ़्ज़ की कोई सूरत नहीं दे पाते। ये शायरी पढ़िए और उन लफ़्ज़ों में बारीक ओ नामालूम से एहसासात की जलवागरी देखिए।
आंच शायरी
आँखآنکھ
eye/ sight
Aankh Ansu Hui
वसीम बरेलवी
काव्य संग्रह
Aankh Aur Khwab Ke Darmiyan
निदा फ़ाज़ली
Khuda Ke Saye Mein Aankh Micholi
रहमान अब्बास
Shumara Number-011
ज़फ़र महमूद शैख़
May 1993आँख मिचोली
Siyah Aankh Mein Tasveer
मुस्तनसिर हुसैन तारड़
अफ़साना
Urdu Fiction Aur Teesri Aankh
वहाब अशरफ़ी
फ़िक्शन तन्क़ीद
Apni Aankh apni Did
ख़्वाजा हसन निज़ामी
Shumara Number-004
Oct 1988आँख मिचोली
Aankh Ka Nasha : Aur Dusre Darame
आग़ा हश्र काश्मीरी
नाटक / ड्रामा
Diye Ki Aankh
मक़बूल आमिर
Aankh Ki Chori
कृष्ण चंदर
Sir Syed Ahmad Khan Aur Unke Namwar Rufaqa
सय्यद अब्दुल्लाह
आलोचना
आँख बीती
रऊफ़ ख़ुशतर
गद्य/नस्र
Dr. Nazeer Ahmad Ki Kahani Kuchh Meri Aur Kuchh Unki Zabani
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
Aankh Jo Sochti Hai
कौसर मज़हरी
सामाजिक
क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता हैहँसने वाले तुझे आँसू नज़र आएँ कैसे
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँकिसी काम में जो न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
ये सभी वीरानियाँ उस के जुदा होने से थींआँख धुँदलाई हुई थी शहर धुँदलाया न था
किसी आँख में नहीं अश्क-ए-ग़म तिरे बअ'द कुछ भी नहीं है कमतुझे ज़िंदगी ने भुला दिया तू भी मुस्कुरा उसे भूल जा
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकताआँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता
काश अब बुर्क़ा मुँह से उठा दे वर्ना फिर क्या हासिल हैआँख मुँदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न कीबिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे
शाम से आँख में नमी सी हैआज फिर आप की कमी सी है
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