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नज़्म
आज की दुनिया
अबना-ए-दहर लेते हैं यूँ साँस गर्म-ओ-तेज़
जीने में जैसे देर हुई जा रही है आज
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ईद की ख़रीदारी
कि शिद्दत भूक की और प्यास की ऐसे मिटाते हैं
ब-ज़ोम-ए-रोज़ा अबना-ए-वतन को काट खाते हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
ग़ज़ल
चाहे अब इस को अपनाओ चाहे नाज़ से ठुकराओ
आज से अपना दख़्ल नहीं है दिल की डोर तुम्हारे हात