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शेर
लूटा जो उस ने मुझ को तो आबाद भी किया
इक शख़्स रहज़नी में भी रहबर लगा मुझे
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
मिरे ख़्वाबों में ख़यालों में मिरे पास रहो
तुम मिरे सारे सवालों में मिरे पास रहो
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
वही मायूसी का आलम वही नौमीदी का रंग
ज़िंदगी भी किसी मुफ़्लिस की दुआ हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
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शेर
अजीब उस से तअ'ल्लुक़ है क्या कहा जाए
कुछ ऐसी सुल्ह नहीं है कुछ ऐसी जंग नहीं
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
कभी ख़ुशबू कभी साया कभी पैकर बन कर
सभी हिज्रों में विसालों में मिरे पास रहो
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
हुस्न ही के दम से हैं ये कहानियाँ सारी
इश्क़ ही सिखाता है ख़ुश-बयानियाँ सारी
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
इसी तलाश में पहुँचा हूँ इश्क़ तक तेरे
कि इस हवाले से पा जाऊँ मैं दवाम अपना
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
तुम्हारे दिल की तरह ये ज़मीन तंग नहीं
ख़ुदा का शुक्र कि पाँव में अपने लंग नहीं
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
आज यूँ मुझ से मिला है कि ख़फ़ा हो जैसे
उस का ये हुस्न भी कुछ मेरी ख़ता हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
मैं तुझ को भूल न पाऊँ यही सज़ा है मिरी
मैं अपने-आप से लेता हूँ इंतिक़ाम अपना
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
मेरे तसव्वुर ने बख़्शी है तन्हाई को भी इक महफ़िल
तू महफ़िल महफ़िल तन्हा हो ये भी तो हो सकता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
वो एक लम्हा मुझे क्यूँ सता रहा है कि जो
नहीं के बा'द मगर उस की हाँ से पहले था