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नज़्म
नई तहज़ीब
अक़ाएद पर क़यामत आएगी तरमीम-ए-मिल्लत से
नया काबा बनेगा मग़रिबी पुतले सनम होंगे
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़ेहन-ए-इंसाँ बस्ता-ए-औहाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
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ग़ज़ल
मुझ पे फ़र्सूदा अक़ाएद की अजब यलग़ार थी
छोटे छोटे वसवसों को ख़ैर-ओ-शर समझा था मैं
लियाक़त जाफ़री
नज़्म
तुलसीदास
अपनी नादानी कहें या अपनी क़िस्मत का क़ुसूर
दीद के ज़र्रीं अक़ाएद से हुए जाते थे दूर
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
क़ाबील का साया
कि अब शहरों में मार ओ अज़दर ओ कर्गस नहीं मिलते
कुतुब-ख़ानों में अफ़्क़ार-ओ-अक़ाएद जल्वा-फ़रमा हैं
सहर अंसारी
नज़्म
बेचैनी
ख़याल-ओ-ख़ाब-ओ-अक़ाएद की सेहर-कारी तक
घुटे घुटे से शब-ओ-रोज़ थे बुझी सी फ़ज़ा
दौर आफ़रीदी
ग़ज़ल
रहेंगे क़स्र-ए-अक़ाएद न फ़लसफ़ों के महल
जो मैं ने अपनी हक़ीक़त का इंकिशाफ़ किया