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ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सोज़-ए-दिल बढ़ने न पाए आँख तक ऐ ज़ब्त-ए-ग़म
आग भड़का देगा ये इस ख़ाना-ए-ख़स-पोश में
ऐमन अमृतसरी
ग़ज़ल
कोई है जो शिकस्त-ए-ज़ब्त-ए-ग़म होने नहीं देता
मैं रोना चाहता हूँ और वो रोने नहीं देता
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
मुझे जब शान-ए-ज़ब्त-ए-ग़म दिखाने का ख़याल आया
वुफ़ूर-ए-दर्द में भी मुस्कुराने का ख़याल आया
ग़ुलाम मुस्तफा बेग साबिर बरारी
ग़ज़ल
ताक़त-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ इतनी बढ़ा सकते हैं हम
इंतिहा-ए-यास में भी मुस्कुरा सकते हैं हम