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ग़ज़ल
बर्ग-ओ-गुल-ओ-तुयूर सब शाख़ों की सम्त उड़ गए
क़सर-ऐ-जहाँ-पनाह में नक़्श-ओ-निगार भी नहीं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
क़ितआ
रुख़्सार हैं या अक्स है बर्ग-ए-गुल-ए-तर का
चाँदी का ये झूमर है कि तारा है सहर का
अहमद नदीम क़ासमी
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ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-ताज़ा बर्ग-ए-गुल में मुंतक़िल होते गए
पंजा-ए-सफ़्फ़ाक में ख़ंजर ख़जिल होते गए
ज़हीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अंजुम-ओ-मेहर-ए-गुल-ओ-बर्ग-ओ-सबा कुछ भी नहीं
ख़ूब देखा ब-ख़ुदा ग़ैर-ए-ख़ुदा कुछ भी नहीं
दिल अय्यूबी
शेर
बरसों गुल-ए-ख़ुर्शीद ओ गुल-ए-माह को देखा
ताज़ा कोई दिखलाए हमें चर्ख़-ए-कुहन फूल