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ग़ज़ल
न बरतो उन से अपनाइयत के तुम बरताव ऐ 'मुज़्तर'
पराया माल इन बातों से अपना हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
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विषय
बरहम
बरहम शायरी
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ग़ज़ल
सारी उम्र ही दिल से अपना ऐसा कुछ बरताव रहा
जैसे खेल में हारने वाले बच्चे को बहलाते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
ज़लज़ला
एक करवट में बदल देती निज़ाम-ए-आलम
इक इशारे ही में हो जाती है ये महफ़िल बरहम
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
जुदाई किस तरह बरताव हम लोगों से करती है
मिज़ाजन हम-सुख़नवर बे-दिल-ओ-बे-ज़ार कैसे हैं
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
इक जैसा बरताव हो कैसे कच्चे सच और झूट के साथ
कोई क़तार में लग कर आया कोई पैराशूट के साथ
अज़हर फ़राग़
ग़ज़ल
अगर हम जान देते हैं तो उन के हुस्न-ए-सूरत पर
हमें बरताव से अंदाज़ से या ढब से क्या मतलब
नूह नारवी
हास्य
इस शख़्स के बरताव से मैं आ चुकी हूँ तंग
इस ने तो मुझे ख़्वाब में भी आन झिंझोड़ा