aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "bas-bas"
नाज़ बट
शायर
मोहम्मद यूनुस बट
born.1962
लेखक
मिरा बाई
काविश बट
Manoj Basu
Biren Basu
रज़िया बट्ट
1924 - 2012
बाल मुकुंद बेसब्र
1812/13 - 1885
बाल स्वरुप राही
born.1936
मुन्नी बाई हिजाब
born.1860
ऋषि पटियालवी
1917 - 1999
क़य्यूम नज़र
1914 - 1989
ली बाई
अब्दुल्लाह बट
उरदुन बोस
आज़माया है मुदाम आप को बस बस अजी बसदोनों हाथों से सलाम आप को बस बस अजी बस
राजा खाए अमरसरानी बोले बस बस
बस बस ऐ वहशत-ए-दिली बस बसजेब में बाक़ी एक तार नहीं
गाली न दिया करो किसी कोबस बस अपनी ज़बाँ सँभालो
बंदे पे न कर करम ज़ियादाबस बस तिरी चाह हम ने कर ली
बीसवीं सदी का आरम्भिक दौर पूरे विश्व के लिए घटनाओं से परिपूर्ण समय था और विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक बड़े बदलाव का युग था। नए युग की शुरुआत ने नई विचारधाराओं के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम की विस्तारवादी आकांछाओं को गहरा आघात पहुँचाया। इन परिस्थितियों ने उर्दू शायरी की विषयवस्तु और मुहावरे भी पूरी तरह बदल दिए और इस बदलाव की अगुआई का श्रेय निस्संदेह अल्लामा इक़बाल को जाता है। उन्होंने पाठकों में अपने तेवर, प्रतीकों, बिम्बों, उपमाओं, पात्रों और इस्लामी इतिहास की विभूतियों के माध्यम से नए और प्रगतिशील विचारों की ऎसी ज्योति जगाई जिसने सब को आश्चर्यचकित कर दिया। उनकी शायरी की विश्व स्तर पर सराहना हुई साथ ही उन्हें विवादों में भी घसीटा गया। उन्हें पाठकों ने एक महान शायर के तौर पर पूरा - पूरा सम्मान दिया और उनकी शायरी पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है और यहां भी उन्हें किसी से कमतर नहीं कहा जा सकता। 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसी उनकी ग़ज़लों - नज़्मों की पंक्तियाँ आज भी अपनी चमक बरक़रार रखे हुए हैं। यहां हम इक़बाल के २० चुनिंदा अशआर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर आप हमारे चयन को समृद्ध करने में हमारी मदद करना चाहें तो आपका रेख्ता पर स्वागत है।
“वक़्त वक़्त की बात होती है” ये मुहावरा आप सबने सुना होगा. जी हाँ वक़्त का सफ़्फ़ाक बहाव ही ज़िंदगी को नित-नई सूरतों से दो चार करता है. कभी सूरत ख़ुशगवार होती है और कभी तकलीफ़-दह. हम सब वक़्त के पंजे में फंसे हुए हैं. तो आइए वक़्त को ज़रा कुछ और गहराई में उतर कर देखें और समझें. शायरी का ये इंतिख़ाब वक़्त की एक गहरी तख़्लीक़ी तफ़हीम का दर्जा रखता है.
वक़्त वक़्त की बात होती है ये मुहावरा हम सबने सुना होगा। जी हाँ वक़्त का सफ़्फ़ाक बहाव ही ज़िंदगी को नित-नई सूरतों से दो चार करता है। कभी सूरत ख़ुशगवार होती है और कभी तकलीफ़-दह। हम सब वक़्त के पंजे में फंसे हुए हैं। तो आइए वक़्त को ज़रा कुछ और गहराई में उतर कर देखें और समझें। शायरी का ये इंतिख़ाब वक़्त की एक गहिरी तख़्लीक़ी तफ़हीम का दर्जा रखता है।
बस-बसبس بس
enough
Ban-Baas
नासिर शहज़ाद
Ban Baas
काैसर प्रवीन
अफ़साना
बादबान
फ़िल्मी-नग़्मे
Do Baiti Nama Ba Ba Tahir
हुज़ूर अहमद सलीम
दोहा
Baat Baat Tazgi
साक़िब साही
नात
Bar Bar
गौहर शेख़ पूर्वी
ग़ज़ल
काव्य संग्रह
गोल बस गोल
माधव चौवान
प्रथम बुक्स
Tareekh-e-Hazrat Peer Ban Baasi
मुहम्मद सईद बिलाल देहलवी
चिश्तिय्या
Piyar Ki Bu Bas
अख़तर मधुपुरी
Bas Ek Sajan Harjai
उम्म-ए-मरयम
सामाजिक
Hum To Jiye Bas Tere Liye
इफ़्फ़त मोहानी
उपन्यास
Bas-Badal-Maut Ka Aqeeda Quran Majeed Ki Roshani Mein
मोहम्मद अहमद रज़ा क़ादरी दिनाजपूरी
इस्लामियात
Bas
दाऊद काश्मीरी
बम बम बम बम भोले भालूसेब नहीं तो खा लो आलू
कह उठा जोबन कि बस बस हो चुकीनीची नज़रों से निगहबानी मिरी
बस बस के हज़ारों घर उजड़ जाते हैंगड़ गड़ के अलम लाखों उखड़ जाते हैं
सर पटकूँ जो दीवार से कहता है वो ज़ालिमबस बस मिरे घर की कहीं दीवार न टूटे
हर लहज़ा हवस बोसे की हर दम बस बसउल्फ़त के तक़ाज़े को न कुछ सुब्ह न शाम
यूँ खुली तेरी ज़ुल्फ़-ए-नाज़ कि बसबस गई ख़ुशबुओं में रात मिरी
खींचा जो मैं वो साअद-ए-सीमीं तो कह उठाबस बस कहीं हमें अभी साहिब ग़श आएगा
कभू मटक कभी बस बस कभू पियाला पटकदिमाग़ करती थी क्या क्या शराब पीने में
कभू मटक कभू बस बस कभू पियाला पटकदिमाग़ करती थी क्या क्या शराब पीने में
घबरा के उस का कहना वो हाए शब-ए-विसालबस बस ज़रा अब आप तो हट कर के सोइए
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