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ग़ज़ल
मिरा तर्ज़-ए-बयान-ए-शौक़ बेबाकाना होता है
अमल जो रिंद से होता है वो रिंदाना होता है
बेदिल अज़ीमाबादी
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ग़ज़ल
घर बुलाता है कभी शौक़-ए-सफ़र खींचता है
दौड़ पड़ता हूँ मुझे जो भी जिधर खींचता है
निसार महमूद तासीर
शेर
असलम महमूद
ग़ज़ल
सभी को ख़्वाहिश-ए-तस्ख़ीर-ए-शौक़-ए-हुक्मरानी है
हमें लगता है अपना दिल नहीं इक राजधानी है