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नज़्म
हम को देखे जो आँख वाला हो
अपनी भोंडी ख़िरद को बहलाएँ
ख़ूब साबुन से उस को नहलाएँ
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
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ग़ज़ल
एक ये दिन जब ज़ेहन में सारी अय्यारी की बातें हैं
एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं
जावेद अख़्तर
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
किताब-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा की फिर शीराज़ा-बंदी है
ये शाख़-ए-हाशमी करने को है फिर बर्ग-ओ-बर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बंजारा-नामा
ज़र दाम-दिरम का भांडा है बंदूक़ सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया जो मुल्कों मुल्कों हांडा है