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नज़्म
हज़रात-ए-इंसाँ
जहाँ में दानिश ओ बीनिश की है किस दर्जा अर्ज़ानी
कोई शय छुप नहीं सकती कि ये आलम है नूरानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़कात-ए-हुस्न दे ऐ जल्वा-ए-बीनिश कि मेहर-आसा
चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हो कासा गदाई का
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
कार्ल मार्क्स
उस की बींनिश उस की वज्दानी-निगाह-ए-हक़-शनास
कर गई जो चेहरा-ए-इफ़्लास-ए-ज़र को बे-नक़ाब
वामिक़ जौनपुरी
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नज़्म
अहिंसा की पहली सुनहरी किरन
मुसीबत का एहसास हिम्मत-फ़ज़ा है
कि अर्बाब-ए-बीनिश की अब रहनुमा है
असर लखनवी
ग़ज़ल
गो कि औरों की हुईं सुरमे से आँखें रौशन
सुर्मा-ए-बीनिश-ए-साहिब-नज़राँ और ही है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सोहबत का असर साहब-ए-बीनिश को हो क्यूँकर
ऐनक हो अगर सब्ज़ न हो जाए हरी आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
हम में कुछ अपनी जगह हैं दानिश-ओ-बीनिश से आरी
और बनने का ये आलम है कि फ़रज़ाने बने हैं