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ग़ज़ल
हम देखते हैं तुम में ख़ुदा जाने बुतो क्या
इस भेद को अल्लाह की क़सम कह नहीं सकते
बहादुर शाह ज़फ़र
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अप्रचलित शेर
बुतो तौबा करो तुम क्या हो जब ए'तिबार आता है
तू यूसुफ़ सा हसीं बिकने सर-ए-बाज़ार आता है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ुदा-नुमा है बुत-ए-संग-ए-आस्ताना-ए-इश्क़
चलूँगा पा-ए-निगह बन के सू-ए-ख़ाना-ए-इश्क़