aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "channels"
चार्ल्स बौडेलेर
1821 - 1867
लेखक
हेनरी चार्ल्स
उर्दू चैनल पब्लिकेशन्स, मुंबई
पर्काशक
बुक चैनल, लाहौर
याक पब्लिशिंग चेंनल, जम्मू
غالب کا ایک شعر ہے، آتے ہیں غیب سے یہ مضامین خیال میں غالب صریر خامہ نوائے سروش ہے غالب کے اس شعر میں تخلیقی عمل کے جن مراحل کا دکر ہوا ہے ان میں بالترتیب غیب، مضمون، خیال، آواز اور خامہ ابھر کر سامنے آئے ہیں۔ غیب وہ منطقہ...
अपनी ज़िंदगी को पुर-सुकून और ख़ुश-गवार बनाने के लिए आप कोअख़बारात ओ रसाइल, मक़्बूल-ए-अवाम टीवी-चैनल्ज़ और हालात-ए-हाज़िरा पर प्रोग्रैम पेश करने वाले
वो ख़्वाब थे ही चँबेलियों से सो सब ने हाकिम की कर ली बै'अतफिर इक चँबेली की ओट में से जो साँप निकले तो लोग समझे
न जाने आरिबा क्यूँ आए क्यूँ मुस्तारबा आएमुज़िर के लोग तो छाने ही वाले थे सो वो छाए
बस्ती पे उदासी छाने लगी मेलों की बहारें ख़त्म हुईंआमों की लचकती शाख़ों से झूलों की क़तारें ख़त्म हुईं
चैनल्ज़چینلز
channels
Chambal Ki Chameli
कृष्ण चंदर
नॉवेल / उपन्यास
Shumara Number-001,002
क़मर सिद्दीक़ी
उर्दू चैनल
Chahel Hadees
मोहम्मद अब्दुर रब देहलवी
इस्लामियात
डाॅ. मोहम्मद युसफुद्दीन
Volume Number-017: Shumara Number-001
क़िस्सा-ए-चमेली-ओ-ग़ुलाब
राजा शिव प्राशाद
मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन
Chahel Jawab-e-Tareekhi
मुंशी देवी प्रसाद
Shumara Number-019
Chal Chameli Bagh Mein
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Yak Sad-o-Chahel Sala Yadgar Adalati
मोहम्मद शम्सुद्दीन सिद्दीक़ी
Qissa Chameli Va Ghulab
शुमारा नम्बर-002,003
Shumara Number-002
Shumara Number-003, 004
Jun, Jul, Aug, Sep, Oct, Nov, Dec 2006उर्दू चैनल
है 'मीर' की अज़्मत कि मुझे चलना सिखायामैं दाग़ के आँगन में खिली बन के चमेली
फिर तुम्हें रोज़ सँवारें तुम्हें बढ़ता देखेंक्यूँ न आँगन में चमेली सा लगा लें तुम को
हर आँगन में आए तेरे उजले रूप की धूपछैल-छबेली रानी थोड़ा घूँघट और निकाल
मेरे महबूब मिरी नींद उड़ाने वालेमेरे मस्जूद मिरी रूह पे छाने वाले
ख़ुशबू की तिजारत ने दीवार खड़ी कर दीआँगन की चमेली में बाज़ार के बेले में
मैं तो आदी हूँ ख़ाक छानने कातुम बताओ कि ढूँढना क्या है
इक चमेली के मंडवे-तलेमय-कदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
फूल खिलने लगते हैं उजड़े उजड़े गुलशन मेंतिश्ना तिश्ना गीती पर अब्र छाने लगते हैं
छाने हैं तिरे इश्क़ में आशुफ़्ता-सरी नेदुनिया-ए-मुसीबत के बयाबान हज़ारों
सुनेगा कौन मगर एहतिजाज ख़ुश्बू काकि साँप ज़हर छिड़कता रहा चमेली पर
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